अमेरिका में जेफ्री एपस्टीन मामले को लेकर एक बार फिर सियासी और सामाजिक भूचाल आ गया है। 19 दिसंबर 2025 को अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) ने एपस्टीन जांच से जुड़ी हजारों फाइलें सार्वजनिक करनी शुरू कीं। यह रिलीज़ Epstein Files Transparency Act के तहत अनिवार्य थी, लेकिन भारी रेडैक्शन (काले किए गए हिस्सों) के चलते यह कदम विवादों में घिर गया है।
कई सांसदों, पीड़ितों और आम नागरिकों ने DOJ पर आरोप लगाया है कि तय समयसीमा के बावजूद पूरी और साफ जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई, जिससे संदेह और नाराज़गी बढ़ गई है।
नए दस्तावेज़ों में सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा है पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बार-बार उल्लेख ने। जारी तस्वीरों और फाइलों में क्लिंटन को एपस्टीन की सहयोगी घिसलेन मैक्सवेल के साथ सामाजिक मौकों पर देखा गया है। एक तस्वीर में वह एक महिला के साथ हॉट टब में नज़र आते हैं, हालांकि महिला का चेहरा ढका हुआ है।
क्लिंटन के प्रवक्ता का कहना है कि उन्होंने एपस्टीन से उस समय ही दूरी बना ली थी, जब उसके अपराध सार्वजनिक भी नहीं हुए थे। इसके बावजूद दस्तावेज़ों में उनके नाम की बार-बार मौजूदगी ने पुराने सवालों को फिर से ज़िंदा कर दिया है।
इसके उलट, शुरुआती समीक्षा में डोनाल्ड ट्रंप का नाम केवल तीन बार सामने आया है। ट्रंप कभी एपस्टीन के पड़ोसी और सामाजिक दायरे का हिस्सा रहे थे, लेकिन दोनों के रिश्ते करीब दो दशक पहले टूट चुके थे।
करीब 3,900 दस्तावेज़ों में से कई के बड़े हिस्से पूरी तरह काले कर दिए गए हैं। एक 119 पन्नों की “Grand Jury-NY” फाइल तो पूरी तरह रेडैक्टेड हालत में जारी की गई, जिसे लेकर सीनेट माइनॉरिटी लीडर चक शूमर समेत कई नेताओं ने तीखी आपत्ति जताई।
विशेषज्ञों का कहना है कि संदर्भ और नामों को छिपाने से यह सवाल और गहरा हो गया है कि आखिर किसे बचाया जा रहा है और क्यों।
एपस्टीन के यौन शोषण से जुड़े पीड़ितों का कहना है कि अधूरी जानकारी जारी करना उनके साथ एक और संस्थागत धोखा है। उनका मानना है कि इस तरह की रिलीज़ न तो जवाबदेही तय करती है और न ही न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है।
देशभर में आम लोग भी यही सवाल उठा रहे हैं कि क्या अमेरिकी न्याय प्रणाली वाकई एपस्टीन के पूरे नेटवर्क और उसकी सच्चाई को सामने लाने के लिए तैयार है।
रेडैक्टेड फाइलों की रिलीज़ के बाद यह मामला सोशल मीडिया, सर्च ट्रेंड्स और राजनीतिक बहसों का बड़ा केंद्र बन गया है। हर तरफ से एक ही मांग उठ रही है, बिना काट-छांट के पूरी सच्चाई सामने लाई जाए।
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