ईरान में ‘मुल्ला हटाओ’ के नारे, तीन साल में सबसे बड़ा जनउभार-क्या इसके पीछे ट्रंप की सख्त नीति का असर?

ईरान में ‘मुल्ला हटाओ’ के नारे, तीन साल में सबसे बड़ा जनउभार-क्या इसके पीछे ट्रंप की सख्त नीति का असर?

ईरान इस समय बीते तीन वर्षों के सबसे बड़े जनआंदोलन का सामना कर रहा है। देश के कई बड़े शहरों में सड़कों पर उतरे लोग “मुल्ला ईरान छोड़ो” और “तानाशाह को मौत” जैसे नारे लगाते दिखे। अयातुल्ला अली खामेनेई के नेतृत्व वाले धार्मिक शासन के खिलाफ प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हुईं।

इस उबाल की बड़ी वजह मानी जा रही है ईरानी रियाल की भारी गिरावट, रिकॉर्ड तोड़ महंगाई और वर्षों से चले आ रहे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध। हालात ऐसे हैं कि रियाल डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच चुका है और महंगाई 40 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है, जिससे आम लोगों की ज़िंदगी बेहद मुश्किल हो गई है।

ईरानी-अमेरिकी पत्रकार और लेखिका मसीह अलीनेजाद ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ईरान की सड़कों से उठ रही आवाज़ें साफ दिखाती हैं कि लोग मौजूदा इस्लामिक व्यवस्था से तंग आ चुके हैं। सोशल मीडिया पर सामने आई कई तस्वीरों और वीडियो में प्रदर्शनकारियों का गुस्सा साफ झलक रहा है। एक तस्वीर, जिसमें एक व्यक्ति तेहरान की सड़क पर अकेला बैठा है और सुरक्षा बल उसकी ओर बढ़ रहे हैं, को 1989 के तियानआनमेन स्क्वायर आंदोलन से भी जोड़ा जा रहा है।

सरकारी मीडिया ने हालांकि इन प्रदर्शनों को कमतर दिखाने की कोशिश की है और कहा है कि ये विरोध केवल आर्थिक परेशानियों तक सीमित हैं। लेकिन कई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि नारे केवल महंगाई तक सीमित नहीं रहे, बल्कि सीधे शासन व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।

बीते कुछ दिनों में तेहरान, मशहद, इस्फहान और शिराज़ जैसे शहरों में व्यापारी, दुकानदार और आम नागरिक सड़कों पर उतरे। हालात इतने बिगड़े कि देश के केंद्रीय बैंक प्रमुख को पद छोड़ना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गुस्सा अचानक नहीं फूटा, बल्कि 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद हुए आंदोलनों से जमा होता चला आ रहा था।

अमेरिका की सख्त नीतियां, खासकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “मैक्सिमम प्रेशर” रणनीति, इस संकट की पृष्ठभूमि में अहम मानी जा रही हैं। 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका के बाहर होने और कड़े प्रतिबंधों के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार दबाव में रही। तेल राजस्व घटा, विदेशी निवेश रुका और आम जनता पर इसका सीधा असर पड़ा।

पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी कहा है कि ईरान की जनता का सड़कों पर उतरना हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चरमपंथ और भ्रष्टाचार ने देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है।

हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन पूरी तरह से किसी विदेशी साजिश का नतीजा नहीं हैं, बल्कि वर्षों से चली आ रही नीतियों, प्रतिबंधों और आंतरिक विफलताओं का परिणाम हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिकी दबाव और हालिया भू-राजनीतिक तनावों ने हालात को और विस्फोटक बना दिया है।

कुल मिलाकर, ईरान की सड़कों पर दिख रहा गुस्सा एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ है जो आर्थिक बदहाली और राजनीतिक थकान से जूझ रही है। ट्रंप की नीतियों का असर भले ही अप्रत्यक्ष हो, लेकिन उन्होंने ईरानी शासन की अंदरूनी कमजोरियों को उजागर कर दिया है और यही आज इस बड़े जनआक्रोश की वजह बनता दिख रहा है।

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