सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में शुरू की गई अपनी स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) कार्यवाही को कलकत्ता हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि चूंकि यह मामला पहले से ही हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है, इसलिए जांच और उससे जुड़े अन्य पहलुओं-जिसमें प्रस्तावित राष्ट्रीय कार्य बल (National Task Force – NTF) का गठन भी शामिल है-की निगरानी हाईकोर्ट द्वारा किया जाना अधिक उपयुक्त होगा।
पीठ ने टिप्पणी की, “हाईकोर्ट द्वारा निगरानी करना और आगे की कार्रवाई करना बेहतर होगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट (स्टेटस रिपोर्ट) की एक प्रति मृतका के माता-पिता को सौंपी जाए। यह आदेश पीड़ित परिवार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी द्वारा रिपोर्ट तक पहुंच की मांग किए जाने के बाद दिया गया।
इससे पहले, पीड़िता के पिता ने जांच में कथित देरी और खामियों पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है। उनका आरोप था कि निचली अदालत द्वारा विवरण मांगे जाने के बावजूद, CBI की स्थिति रिपोर्ट में पहले की तरह ही एक बड़े षड्यंत्र का दावा दोहराया गया है, जिसमें संदीप घोष और अभिजीत मंडल की गिरफ्तारी का उल्लेख किया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया, “डायरेक्टर तीन महीने से कह रहे हैं कि चार्जशीट दाखिल की जाएगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ।”
उन्होंने यह भी कहा कि परिवार ने खुद कई अहम सुराग इकट्ठा किए हैं।
पीड़िता के पिता ने स्थानीय पुलिस पर भी शुरुआती चरण में मामले को सही तरीके से न संभालने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि घटना की जानकारी पहले ही ताला पुलिस स्टेशन को मिल गई थी और शव को अपराध स्थल से हटाकर एक सेमिनार कक्ष में ले जाया गया।
यह घटना 9 अगस्त 2024 को हुई थी, जब 31 वर्षीय स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर का शव आरजी कर मेडिकल कॉलेज परिसर के एक सेमिनार रूम में मिला था। इस मामले ने देशभर में आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया, जहां डॉक्टरों और नागरिक समाज के संगठनों ने पीड़िता के लिए त्वरित न्याय की मांग की।
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