बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मौजूदा परिस्थितियों में देश लौटने की सभी अपीलों को खारिज कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ चल रही कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है और चेतावनी दी कि बांग्लादेश लगातार अराजकता, हिंसा और लोकतांत्रिक संकट की ओर बढ़ रहा है।
हसीना का यह बयान ऐसे समय आया है, जब हाल के दिनों में बांग्लादेश में फिर से हिंसा भड़की है। पिछले सप्ताह एक हिंदू व्यक्ति की हत्या की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता से हटाए जाने के बाद से कानून-व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। उनका कहना है कि जब तक देश में एक वैध सरकार और स्वतंत्र न्यायपालिका बहाल नहीं होती, तब तक उनके लिए लौटना संभव नहीं है।
शेख हसीना ने मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उनके अनुसार, यह प्रशासन न तो लोकतांत्रिक रूप से चुना गया है और न ही निष्पक्ष है, बल्कि राज्य संस्थाओं का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के फैसले को एक न्यायिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि उन्हें राजनीति से बाहर करने की साजिश बताया।
हसीना का दावा है कि उन्हें अपनी रक्षा का अधिकार, वकील चुनने की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई इनमें से कुछ भी नहीं दिया गया। उनका कहना है कि यह कार्रवाई केवल उनके खिलाफ नहीं, बल्कि आवामी लीग के पूरे नेतृत्व को खत्म करने की योजना का हिस्सा है।
गौरतलब है कि नवंबर में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने जुलाई अगस्त 2024 के आंदोलन के दौरान कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले में शेख हसीना को दोषी ठहराया था। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सभी आरोपों में दोषसिद्धि के बाद उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया। फैसले में यह कहा गया कि तत्कालीन सरकार ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान अत्याचारों को बढ़ावा दिया।
हालांकि इस फैसले को अस्वीकार करते हुए शेख हसीना ने कहा कि उन्हें अब भी बांग्लादेश के संवैधानिक मूल्यों पर भरोसा है और एक दिन न्याय जरूर होगा बशर्ते संस्थाओं की स्वतंत्रता बहाल की जाए। उन्होंने प्रत्यर्पण की मांगों को भी सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह एक कमजोर और जनसमर्थन विहीन प्रशासन की हताशा को दर्शाता है।
अंतरिम सरकार की राजनीतिक योजना पर सवाल उठाते हुए हसीना ने फरवरी में प्रस्तावित चुनावों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह जताया। उन्होंने कहा कि जब तक आवामी लीग पर प्रतिबंध रहेगा, तब तक कोई भी चुनाव न तो निष्पक्ष होगा और न ही जनता का भरोसा हासिल कर पाएगा। उनके अनुसार, ऐसे चुनाव केवल लोकतंत्र को खोखला करेंगे।
देश छोड़ने के फैसले को लेकर शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने खूनखराबा रोकने के लिए बांग्लादेश छोड़ा था, न कि जवाबदेही से बचने के लिए। उन्होंने भारत द्वारा दिए गए आतिथ्य के लिए आभार जताया, लेकिन साथ ही कहा कि मौजूदा अंतरिम सरकार के चलते भारत-बांग्लादेश संबंधों में गंभीर गिरावट आई है*m।
हसीना ने आरोप लगाया कि वर्तमान प्रशासन भारत-विरोधी भावनाओं को हवा दे रहा है, धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रहा है और चरमपंथी ताकतों को खुली छूट दी गई है। उनके अनुसार, भारत दशकों से बांग्लादेश का सबसे भरोसेमंद साझेदार रहा है और दोनों देशों के संबंध अस्थायी सरकारों से कहीं ऊपर हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि मौजूदा हालात में भारतीय दूतावासों और मिशनों की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। उनके मुताबिक, चरमपंथी गुटों ने मीडिया संस्थानों, अल्पसंख्यक समुदायों और विदेशी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया है, जबकि कई सजायाफ्ता उग्रवादियों को रिहा कर प्रभावशाली पदों पर बैठाया गया है।
छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या का जिक्र करते हुए हसीना ने कहा कि यह घटना बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था के पूर्ण विघटन का प्रतीक है। उनका कहना है कि जब कोई देश आंतरिक सुरक्षा संभालने में असफल होता है, तो उसकी अंतरराष्ट्रीय साख भी तेजी से गिरती है।
शेख हसीना ने कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जताई। उन्होंने दावा किया कि कुछ संगठन अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जुड़े हैं और खुलेआम गतिविधियां चला रहे हैं। उनका कहना है कि ये गुट बाहर से संयमित दिखते हैं, लेकिन अंदरखाने संस्थाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेल रहे हैं जो पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरा है।
भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) को लेकर दिए जा रहे बयानों को उन्होंने गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि यह बांग्लादेश की जनता की सोच का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उनके अनुसार, कोई भी जिम्मेदार नेतृत्व ऐसे पड़ोसी को धमकी नहीं देगा, जो क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापार के लिए अहम है।
अंतरिम सरकार के पाकिस्तान के प्रति झुकाव पर भी सवाल उठाते हुए हसीना ने कहा कि यह रणनीतिक संतुलन नहीं, बल्कि कूटनीतिक भ्रम और अलगाव को दर्शाता है।
अपनी बात दोहराते हुए शेख हसीना ने कहा कि मौजूदा अंतरिम प्रशासन को देश की दीर्घकालिक नीतियों को बदलने का कोई जनादेश नहीं है। उन्होंने भरोसा जताया कि जब बांग्लादेश के लोग दोबारा स्वतंत्र रूप से मतदान कर सकेंगे, तभी लोकतंत्र, संस्थाएं और अंतरराष्ट्रीय रिश्ते फिर से पटरी पर लौटेंगे।
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