भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान पर तीखा हमला बोलते हुए इस्लामाबाद के आंतरिक राजनीतिक संकट को उसके लंबे समय से चले आ रहे सीमा-पार आतंकवाद के रिकॉर्ड से जोड़ा। साथ ही भारत ने आधुनिक वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए UNSC में तत्काल सुधार की मांग भी दोहराई।
मंगलवार को UNSC में भारत ने पाकिस्तान को कड़ी फटकार लगाई। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे राजदूत हरीश पर्वतननी ने पाकिस्तान की घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल और उसके सीमा-पार आतंकवाद के इतिहास के बीच सीधा संबंध बताया।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विशेष रूप से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जेल में डाले जाने, उनकी राजनीतिक पार्टी पर प्रतिबंध और 27वें संविधान संशोधन के जरिए सेना द्वारा “संवैधानिक तख्तापलट” किए जाने का मुद्दा उठाया।
‘शांति के लिए नेतृत्व’ विषय पर आयोजित UNSC की खुली बहस को संबोधित करते हुए राजदूत पर्वतननी ने अगस्त 2023 से 19 करोड़ यूरो के भ्रष्टाचार मामले में इमरान खान की कैद का उल्लेख किया। इसके साथ ही उन्होंने 9 मई 2023 के विरोध प्रदर्शनों से जुड़े मामलों में आतंकवाद निरोधक कानून (Anti-Terrorism Act) के तहत चल रहे मुकदमों का भी जिक्र किया। उन्होंने अदियाला जेल में खान के कथित अमानवीय व्यवहार को लेकर यातना पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ऐलिस जिल एडवर्ड्स द्वारा जताई गई चिंताओं की ओर भी ध्यान दिलाया।
राजदूत पर्वतननी ने कहा,
“पाकिस्तान के पास अपने लोगों की इच्छा का सम्मान करने का एक अनोखा तरीका है-एक प्रधानमंत्री को जेल में डालना, सत्तारूढ़ राजनीतिक दल पर प्रतिबंध लगाना, और 27वें संशोधन के जरिए अपनी सशस्त्र सेनाओं से संवैधानिक तख्तापलट कराना तथा अपने चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज को आजीवन प्रतिरक्षा देना।”
उन्होंने 27वें संशोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि इसने पाकिस्तान की सैन्य और न्यायिक व्यवस्था को नया स्वरूप दिया और चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज आसिम मुनीर को आजीवन कानूनी संरक्षण प्रदान किया।
भारत ने जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की टिप्पणियों को भी सख्ती से खारिज किया और उन्हें “अनावश्यक” करार दिया। भारत ने कहा कि इस तरह के बयान इस बात का प्रमाण हैं कि पाकिस्तान भारत और उसके लोगों को नुकसान पहुंचाने के प्रति “जुनूनी” है। राजदूत पर्वतननी ने स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत के अभिन्न अंग हैं।
उन्होंने कहा, “एक गैर-स्थायी सुरक्षा परिषद सदस्य जो संयुक्त राष्ट्र के हर मंच और बैठक में अपने विभाजनकारी एजेंडे के तहत इस जुनून को आगे बढ़ाता है, उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपनी निर्धारित जिम्मेदारियों और दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन करेगा।”
भारतीय राजदूत ने पाकिस्तान के आतंकवाद को प्रायोजित करने के लंबे इतिहास को रेखांकित करते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित रखने के भारत के फैसले का बचाव किया। अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का हवाला देते हुए, जिसमें 26 नागरिकों की धर्म के आधार पर हत्या की गई थी, उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं पाकिस्तान के सीमा-पार आतंकवाद को समर्थन देने की निरंतर नीति को उजागर करती हैं।
उन्होंने कहा,
“भारत ने 65 वर्ष पहले सद्भावना के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इन साढ़े छह दशकों के दौरान पाकिस्तान ने तीन युद्ध थोपकर और हजारों आतंकी हमले कर संधि की भावना का उल्लंघन किया है। इसी पृष्ठभूमि में भारत ने घोषणा की है कि जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा-पार और सभी प्रकार के आतंकवाद का समर्थन समाप्त नहीं करता, तब तक संधि को स्थगित रखा जाएगा।”
पाकिस्तान पर हमले के साथ-साथ भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार की भी जोरदार वकालत की और इसे “तत्काल वैश्विक आवश्यकता” बताया। राजदूत पर्वतननी ने कहा कि सुरक्षा परिषद की लगभग आठ दशक पुरानी संरचना आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस के शब्दों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा,
“हम अपने पोते-पोतियों के लिए ऐसा भविष्य नहीं बना सकते, जो हमारे दादा-दादी के दौर की प्रणालियों पर आधारित हो।”
उन्होंने UNSC सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता (Intergovernmental Negotiations) प्रक्रिया को समयबद्ध और पाठ-आधारित वार्ताओं की दिशा में आगे बढ़ाने का आह्वान किया, ताकि कम प्रतिनिधित्व वाले और बिना प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को उचित स्थान मिल सके।
भारत ने एक बार फिर अधिक प्रतिनिधित्वयुक्त, समावेशी और प्रभावी सुरक्षा परिषद के अपने लंबे समय से चले आ रहे रुख को दोहराया, साथ ही पारदर्शिता, जवाबदेही और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भारत के योगदान को भी रेखांकित किया।
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